इंटरमिटेंट फास्टिंग फिटनेस की दुनिया में सबसे तेज़ी से सामने आने वाला नाम है।
लाखों लोग घर में रहकर भी इस तरीके से अपना वजन कम कर पा रहें हैं।
न सिर्फ वजन बल्कि इंटरमिटेंट फास्टिंग से संपूर्ण मेटाबोलिज्म सही कर पा रहें हैं।
परन्तु इंटरमिटेंट फास्टिंग सही तरीके से करने की एक विधि है और यह प्रक्रिया अलग-अलग चरणों में होती है।
आइये हम विस्तार से इंटरमिटेंट फास्टिंग के बारे में जानते हैं।
Table of Contents
इंटरमिटेंट फास्टिंग क्या होता है?
इंटरमिटेंट फास्टिंग असल में एक पैटर्न होता है हमारे खाने का या खाना न खाने का।
सरल शब्दों में
हमें कब खाना चाहिए या कब नहीं खाना चाहिए उसके समय में बदलाव।
मगर हम ऐसा करना क्यों चाहेंगे,
क्योंकि इंटरमिटेंट फास्टिंग हमारे Weight Loss के लिए सबसे महत्वपूर्ण है।
भारतवर्ष में इंटरमिटेंट फास्टिंग कोई नया कांसेप्ट नहीं है। यहाँ सदियों से उपवास को और उससे होने वाले फायदों को महत्व दिया जाता आ रहा है।
इंटरमिटेंट फास्टिंग की प्रक्रिया
हमारे शरीर में वजन बढ़ने का कारन होर्मोनेस होते हैं। उनका संतुलन में रहना बहुत ही महत्वपूर्ण होता है।
इंटरमिटेंट फास्टिंग से यही संतुलन को दोबारा बनाने में मदद मिलती है।
यह हमारे शरीर में दो सबसे महत्वपूर्ण Hormones को trigger करता है जो कि वेट लॉस के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण होते हैं
- ग्रोथ हाॅर्मोन
- इंसुलिन
थोड़ा विस्तार में जानें तो हमारे शरीर में 6 Fat burning hormone होते हैं और 3 Fat storing hormone होते हैं।
जब भी हमारे शरीर में फैट स्टोरिंग हाॅर्मोंस काम कर रहे होते हैं तो हमारे शरीर में फैट बर्निंग पूरी तरह से रुक जाती है।
ग्रोथ हाॅर्मोन
इंटरमिटेंट फास्टिंग से ग्रोथ हाॅर्मोन ट्रिगर होता है जो कि एक फैट बर्निंग हाॅर्मोन है।
यह हमारे शरीर के सबसे ज़रूरी होर्मोनेस में से एक है।
ग्रोथ हॉर्मोन न केवल फैट बर्निंग में मदद करता है बल्कि हमारी मसल्स को बनाने में भी मदद करता है।
ऐसा इसलिए होता है क्योंकि यह हॉर्मोन प्रोटीन बनाने में सहायक होता है।
इंसुलिन
इंसुलिन एक फैट स्टोरिंग हाॅर्मोन है, यह हमारे वजन बढ़ने का सबसे बड़ा कारण होता है।
इंटरमिटेंट फास्टिंग से उसका उत्पादन कम हो जाता है।
इसलिए इंटरमिटेंट फास्टिंग Insulin Resistance में भी मदद करता है।
यदि हम दिन में 5 – 6 बार कुछ खाते हैं भले ही वह कुछ हैल्दी क्यों ना हो पर
हम जितनी बार भी भोजन करते हैं या स्नैकिंग करते हैं उतनी बार हम अपने शरीर में इंसुलिन को ट्रिगर करते हैं।
इंटरमिटेंट फास्टिंग के चरण
पहला चरण
सही तरीके से इंटरमिटेंट फास्टिंग करने का पहला चरण है कि
हम दिन में 5 से 6 बार खाने की जगह
3 बार खाना खाये।
इससे इन्सुलिन की अधिकता को हम कम कर सकते हैं जोकि वजन बढ़ने का सबसे बड़ा कारण है।

दूसरा चरण
दूसरे चरण में हमें 8 घंटे की समय सीमा में अपने पूरे दिन का भोजन खत्म करना होता है
और 16 घंटे का फैट बर्निंग का समय देना होता है।
इंटरमिटेंट फास्टिंग का सबसे ज्यादा लाभ हमें रात को सोने के बाद और सुबह उठने से पहले के समय में होता है। इसलिए हम भोजन का समय 8 घंटे के बीच में रखते हैं।
तीसरा चरण
हम अगले चरण की बात करें तो वह थोड़ा मुश्किल होता है।
इस चरण में हमें सिर्फ दो बार ही भोजन करना होता है।
यह भोजन हमें 4 घंटे के भीतर करना होता है और 20 घंटे हमें फैट बर्निंग को देने होते हैं।
इसे अच्छी तरह समझें तो
अगर हम सुबह अपना लंच 12:00 बजे करते हैं तो 4:00 बजे तक हमें अपना दूसरा मील खत्म करना होता है।
मगर एक चरण से दूसरे चरण जाने में हमारे शरीर को
समय लगता है
यह एकदम से नहीं होता है।
यदि हम समय की बात करें तो
पहले चरण से दूसरे चरण में जाने में हमें लगभग तीन हफ्तों का समय लग जाता है।
वही दूसरे चरण से तीसरे चरण में जाने में हमें 1 से 2 महीने का समय लग जाता है।
क्या इंटरमिटेंट फास्टिंग से कुछ नुक्सान होता है?
इंटरमिटेंट फास्टिंग सुनने में ज़रूर नया है परन्तु भारतवर्ष में शुरू से ही उपवास को बहुत महत्व दिया गया है।
यदि आप हर चरण को अछि तरह से समय देकर करते हैं तो कोई भी नुक्सान नहीं होता है।
हांलाकि जब हम फास्टिंग शुरू करते हैं और शक्कर को पूर्ण रूप से बंद कर देते हैं तो उसके कुछ लक्षण दिख सकते हैं जैसे
- सिरदर्द
- कुछ खाने का बहुत अधिक मन होना
- कमज़ोरी लगना
इंटरमिटेंट फास्टिंग सबसे असरदार कब होती है?
हम जितना मीठा या कार्बोहायड्रेट कहते हैं हमारे शरीर को उतनी मात्रा में उसकी ज़रुरत नहीं होती है।
इंटरमिटेंट फास्टिंग का जल्दी असर दिखने के लिए शक्कर या मीठे को पूरी तरह से बंद करना एक बहुत अच्छा विकल्प है।
वजन कम करने के लिए इस आर्टिकल को ज़रूर पढ़ें ।
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