उपवास या इंटरमिटेंट फास्टिंग एक बहुत ही प्रचलित तरीका है अपना वज़न घटाने का।
इसमें न केवल हम अपने खाने के समय को निर्धारित करते हैं बल्कि अपने खान-पान में बदलाव करके लम्बे समय तक बिना खाये रहने का प्रयास भी करते हैं।
पर क्या आप जानते हैं कि फास्टिंग हमारे शरीर में किस तरह से वज़न कम करती है?
इंटरमिटेंट फास्टिंग के अलग-अलग चरण होते हैं, इस आर्टिकल में हम देखेंगे कि किस तरह शरीर में बदलाव आते हैं जब हम लम्बे समय तक खाना नहीं खाते हैं।
आइए जानते हैं कि फास्टिंग के अलग-अलग चरणों जैसे 12 घंटे, 24 घंटे, 48 घंटे और 72 घंटे में शरीर में क्या-क्या परिवर्तन आते हैं।
और किस तरह ये हमारा वजन कम करने में सहायक होता है –
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12 घंटे बाद का प्रभाव
यह फास्टिंग का पहला चरण होता है। यदि हम रात का खाना 10 बजे करते हैं और सुबह का नाश्ता 10 बजे करते हैं तो 12 घंटे का समय होता है।
12 घंटे तक फास्टिंग करने से हमारे शरीर में ग्रोथ हॉर्मोन बढ़ जाता है।
ग्रोथ हाॅर्मोन (GH) हमारे शरीर के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण कार्य करता है।
इसके कुछ कार्य हैं –
- यह एक एंटी एजिंग हाॅर्मोन है
- हमारे शरीर में फैट को पचाने में मदद करता है
- जोड़ों के दर्द को ठीक करता है
- प्रोटीन बनाने में मदद करता है
ग्रोथ हाॅर्मोन फास्टिंग के साथ-साथ कसरत से भी सक्रिय होता है।
GH आपको चोट और बीमारी से उबरने में मदद करते हुए मांसपेशियों की वृद्धि, ताकत और व्यायाम प्रदर्शन को भी बढ़ाता है।
ग्रोथ हाॅर्मोन का निम्न स्तर आपके जीवन की गुणवत्ता को कम कर सकता है,
आपके रोग के जोखिम को बढ़ा सकता है और आपको मोटा बना सकता है।
यह चरण सबसे आसान होता है और जितना हो सके इसको अपनी जीवन शैली में शामिल करने का प्रयत्न करना चाहिए।
18 घंटे बाद का प्रभाव
18 घंटे बाद शरीर में एक प्रक्रिया चालू हो जाती है, जो Autophagy कहलाती है।
इस प्रक्रिया में दो तरह की चीज़ें होनी शुरू हो जाती हैं –
- शरीर में जो पुराने और क्षतिग्रस्त प्रोटीन हैं वह Recycle होने लगते हैं।
- शरीर में Amyloid खत्म होने लगते हैं। Amyloid प्रोटीन्स और शक्कर से मिलकर बना एक चिपचिपा पदार्थ होता है जो शरीर में जमा हो जाता है।
हम कह सकते हैं कि Autophagy हमारे शरीर में सफाई करने का काम करती है।
जब हमारी कोशिकाओं पर जोर पड़ता है, तो हमारी रक्षा के लिए Autophagy बढ़ जाती है, जो आपके जीवनकाल को बढ़ाने में मदद करती है।
फास्टिंग के समय, Autophagy सेलुलर सामग्री को तोड़कर और आवश्यक प्रक्रियाओं के लिए इसका पुन: उपयोग करके शरीर को चालू रखता है।
24 घंटे बाद का प्रभाव
24 घंटों के पश्चात हमारे शरीर से ग्लाइकोजन (Glycogen) खत्म होने लगता है।
ग्लाइकोजन हमारे लिवर में जमा होता है और जैसे-जैसे लिवर से ग्लाइकोजन खत्म होने लगता है,
हमारा शरीर Ketones पर चलने लगता है।
यदि आपको फैटी लिवर है तो शरीर उस फैट को उपयोग करके कीटोंस में परिवर्तित करने लगेगा।
24 घंटे के बाद होने वाले फायदों को जानते हैं –
- ज्यादा भूख ना लगना – जब हमारा शरीर फैट के ऊपर चलने लगता है तो हमें बार-बार भूक लगनी बंद हो जाती है।
- Cravings खत्म हो जाना – ज़्यादातर क्रेविंग हमारे शरीर में तभी होती है जब ग्लूकोस का स्तर नीचे चला जाता है और उसे वापस पहले जैसा लेन के लिए कुछ न कुछ खाने का मन होता है।
- शरीर में Anti-Oxidants का बढ़ना – एंटीऑक्सिडेंट ऐसे पदार्थ हैं जो फ्री रैडिकल्स के कारण होने वाले सेल्स के नुकसान को रोक सकते हैं या धीमा कर सकते हैं।
- ऑक्सीजन का बढ़ना – ऑक्सीजन यह सुनिश्चित करने में एक आवश्यक भूमिका निभाती है कि आपकी मांसपेशियों, मस्तिष्क और अन्य अंगों को वह ऊर्जा प्राप्त हो जो उन्हें ठीक से काम करने के लिए चाहिए।
- ज्यादा चुस्ती महसूस करना – ग्लूकोस की तुलना में कीटोन्स से अधिक ऊर्जा प्राप्त होती है इसलिए शरीर में अधिक चुस्ती महसूस होती है।
- शरीर के दर्द में आराम लगना
- यदि आपको इंटेस्टाइन से जुड़ी कोई भी परेशानी है, उसमें आराम लगना
- ह्रदय सम्बन्धी कार्यों में सुधार होना
- शरीर रोगाणुओं (microbes) को नष्ट करने लगेगा
२४ घंटे की फास्टिंग से सबसे अच्छा प्रभाव यह होता है कि शरीर स्वस्थ होने लगता है।
48 घंटे बाद का प्रभाव
48 घंटे बाद हमारे शरीर में स्टेम सेल्स stimulate होने लगते हैं।
इन स्टेम सेल्स का कोई भी निश्चित कार्य नहीं होता है और शरीर की ज़रूरत के हिसाब से यह कार्य करने लगते हैं।
अर्थात जिस जगह शरीर को सेल्स कि ज़रूरत होती है स्टेम सेल्स उसी जगह कार्य करने लगते हैं।
इससे शरीर ज़्यादा तेज़ी से स्वस्थ होता है।
इसकी वजह से शरीर में कई तरह के कैंसर होने से बचाव होता है।
48 घंटे फास्टिंग का असर
- स्टेम सेल्स का बनना शुरू होना
- कैंसर का खतरा कम होना
- अधिक मात्रा में माइटोकॉन्ड्रिया का बनना
72 घंटे बाद का प्रभाव
72 घंटे बाद और भी अधिक स्टेम सेल स्टिम्युलेट होते हैं।
यह फास्टिंग का एक मुश्किल पड़ाव है जो कि हमेशा नहीं करना चाहिए।
जिन लोगों को फास्टिंग की आदत नहीं है वह यदि 72 घंटे की फास्टिंग करते हैं तो उनमें न्यूट्रीशन की कमी हो जाती है।
जिसमें चक्कर आना जैसा दुष्प्रभाव भी हो सकता है।
इसलिए सही तरह से इंटरमिटेंट फास्टिंग करना ज़रूरी है।
निष्कर्ष
इंटरमिटेंट फास्टिंग कि पूरी प्रक्रिया अलग-अलग चरणों में बटि हुई है।
शुरू के चरण हालाँकि आसान होते हैं और इन्हे हमें अपनी जीवनशैली में अवश्य ही शामिल करना चाहिए।
जैसे-जैसे हम आगे के चरणों में जाते हैं यह मुश्किल होता जाता है इसलिए
इसको चालू करने से पहले सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक है। अतः किसी विशेषज्ञ की सलाह लेना ही समझदारी है।
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