यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्न है कि क्या हम एक प्रीडायबीटिक अवस्था वाले व्यक्ति को डायबिटीज होने से बचा सकते हैं?
इसका उत्तर है हां!
सबसे पहले हम जानते हैं कि प्रीडायबिटीज कंडीशन और डायबिटीज में क्या फर्क होता है।
प्रीडायबिटीज कंडीशन में आपका शुगर का स्तर 100 से 126 के बीच में होता है।
वही डायबिटीज में 126 के ऊपर आपका शुगर का स्तर पहुंच जाता है।
सामान्य स्थिति में हमारे शुगर का स्तर 80 होता है।
इसका अर्थ यह है कि
आपके शरीर में केवल 1 छोटी चम्मच शुगर ही होती है।
अगर हम थोड़ी भी शक्कर नहीं खाते हैं तो हमारा शरीर इतना समर्थ है कि वह अपनी जरूरत के मुताबिक शुगर बना सकें।
फिर दिक्कत कहां आती है?
एक आम व्यक्ति दिन में 31 छोटी चम्मच शुगर की लेता है।
इसमें हर तरह के कार्बोहाइड्रेट भी शामिल है जो हम खाने के रूप में लेते हैं।
इससे साफ है कि हम कितनी अधिक मात्रा में शक्कर खाते है।
पर यदि हम इतनी मात्रा में शक्कर खाते हैं तो हमारा शरीर उसके लक्षण तुरंत क्यों नहीं दिखाता है।?
उसका कारण है इंसुलिन।
इंसुलिन एक फिल्टर की तरह काम करता है और
जितनी भी अधिक मात्रा में शुगर हमारे खून में आ जाती है उससे छुटकारा पाता है।
वह उसे ग्लाइकोजन के रूप में लिवर में और मांसपेशियों में छुपा देता है।
और कुछ को कोलेस्ट्रॉल में बदल देता है।
इंसुलिन शक्कर को हमारे खून में बहने नहीं देता क्योंकि हमारा शरीर खून में शक्कर नहीं चाहता है।
क्योंकि शुगर हमारी नसों के अंदर ऑक्सीडेशन करके उसे क्षति पहुंचाती है।
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इन्सुलिन रेजिस्टेंस
यदि हम बहुत अधिक मात्रा में कार्बोहाइड्रेट खा रहे हैं और हमें दिन में बार-बार खाने की आदत है तो
हमारे शरीर में इंसुलिन का स्तर बहुत अधिक बढ़ जाएगा।
हमारा शरीर ना तो अधिक मात्रा में शुगर चाहता है और ना ही अधिक मात्रा में इंसुलिन।
क्योंकि अधिक मात्रा में इंसुलिन भी हमारे शरीर के लिए हानिकारक होता है।
इसलिए शरीर इंसुलिन की मात्रा को कम करने लगता है प्रतिरोध के जरिए।
इसी को इन्सुलिन रेजिस्टेंस कहते हैं।
प्री-डायबिटीज/इन्सुलिन रेज़िस्टेंस की अवधि
अब दिक्कत यह आती है कि हमारे शरीर को खून में शुगर के स्तर को भी नियंत्रित रखना है
तो वह और अधिक इंसुलिन बनाने लगता है।
यह अवस्था बहुत लंबे समय तक रह सकती है जिसकी अवधि 10 से 15 साल भी हो सकती है।
उसके बाद पैंक्रियास थक जाता है और वह इंसुलिन बनाने में असमर्थ हो जाता है।
इस समय यदि आप कार्बोहाइड्रेट और शक्कर खाना बंद नहीं करते हैं तो खून में शुगर का स्तर बढ़ता चला जाता है।
और इसी अवस्था के कारण डायबिटीज होती है।
प्री-डायबिटीज को पलटने का तरीका
अगर आप प्री डायबिटिक हो तो यह समस्या को समझना बहुत ही अधिक महत्वपूर्ण है।
क्योंकि थोड़े बहुत ही प्रयास से इस समस्या का समाधान हो सकता है।
समाधान बहुत ही सरल है
अपने खाने में कार्बोहाइड्रेट्स कम करना
हम भारतीय अपने खाने में सबसे अधिक कार्बोहाइड्रेट्स ही खाते हैं।
कार्बोहाइड्रेट्स हमारा वजन बढ़ने का सबसे बड़ा कारण होता है।
ऐसा बिलकुल भी नहीं है कि कार्बोहाइड्रेट्स एक ज़रूरी पोषक तत्त्व नहीं है परन्तु ज़रुरत से अधिक यदि लिया जाये तो कोई भी चीज़ हानिकारक ही होती है।
कार्बोहायड्रेट ही प्री डायबिटिक और डायबिटिक कंडीशन का मुख्य कारण है।
हम जितनी बार भी कार्ब्स खाते हैं हमारे रक्त का ग्लूकोस का स्तर बढ़ जाता है , जिसे कम करने के लिए इन्सुलिन निकलता है।
इन्सुलिन जो भी अधिक मात्रा में कार्ब्स है उसे ग्लाइकोजन में बदल कर लिवर में संग्रहित कर देता है। इसी तरह वह न केवल इन्सुलिन रेजिस्टेंस अपितु लिवर की स्थिति भी बिगड़ता है।
अतः प्री-डायबिटिक कंडीशन में सुधार के लिए यह ज़रूरी है की हम अपने खाने में कार्बोहाइड्रेट बंद करें।
इंटरमिटेंट फास्टिंग
उपवास या इंटरमिटेंट फास्टिंग एक बहुत ही प्रचलित तरीका है अपना वज़न घटाने का।
इसमें न केवल हम अपने खाने के समय को निर्धारित करते हैं बल्कि अपने खान-पान में बदलाव करके लम्बे समय तक बिना खाये रहने का प्रयास भी करते हैं।
इंटरमिटेंट फास्टिंग हमारे इन्सुलिन के स्तर को नियंत्रित करने में मदद करता है।
क्योंकि हमारे खाना खाने की आदत बहुत बड़ा कारक है हमारे शरीर में होने वाली गतिविधियों का।
यदि हम दिन में दो से ३ बार ही खाना खाते है तो इन्सुलिन कम बनेगा और हमारा कार्बोहायड्रेट का स्तर भी नियंत्रित रहेगा।
इसलिए बहुत ज़रूरी है की यदि हम अपनी प्री-डायबिटिक अवस्था को पलटना चाहते हैं तो इंटरमिटेंट फास्टिंग करना शुरू करें।
हम गलती करते हैं कि हम अपनी ब्लड शुगर पर ही ध्यान केंद्रित करते हैं।
और यह भूल जाते हैं कि इन्सुलिन रेजिस्टेंस और प्रीडायबिटीक अवस्था को पलटा जा सकता है।
लगभग 99% लोगों को यह नहीं पता होता है कि उनमें इन्सुलिन रेजिस्टेंस है।
आइए कुछ लक्षणों पर नजर डालते हैं जो इन्सुलिन रेजिस्टेंस को दर्शाता है।
इन्सुलिन रेजिस्टेंस के लक्षण
- बार-बार पेशाब आना
- ज्यादा देर तक बिना खाए ना रह पाना
- चीजें भूल जाना
- मीठा खाने की इच्छा होना
- खाना खाने के बाद नींद आना
- हाथों और पैरों में झुनझुनी आना
यदि आपके स्पष्ट लक्षण नहीं हैं, तो आपके डॉक्टर आमतौर पर लैब टेस्ट के द्वारा प्रीडायबिटीज या डायबिटीज का पता लगा सकते हैं।
आपको कब टेस्ट करवाना चाहिए
डायबिटीज या मधुमेह के लिए परीक्षण लगभग 40 साल की उम्र में शुरू होना चाहिए, परन्तु आपके डॉक्टर कम उम्र में परीक्षण की सिफारिश कर सकते है यदि आप:
- एक गतिहीन जीवन शैली (Sedentary Lifestyle) है
- कम HDL (अच्छा कोलेस्ट्रॉल) स्तर या उच्च ट्राइग्लिसराइड स्तर है
- परिवार में डायबिटीज का इतिहास है
- उच्च रक्तचाप (BP) है (140/90 mm Hg या उससे अधिक)
- प्रीडायबिटीज के लक्षण हैं
- दिल का दौरा पड़ा हो
निष्कर्ष
डायबिटीज को मदर ऑफ़ आल डिसीसेस कहा जाता है क्योंकि वह अन्य बहुत सी बिमारियों का कारण बनती है।
इसलिए समझदारी उसी में की उसे होने से पहले ही रोका जाये।
प्री-डायबिटीज के लक्षण समझ कर उचित उपाए करना ही बेहतर है परन्तु हमें इतना सजग रहना होता है के उन लक्षण को जल्दी ही समझ लें।
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