बाज़ारों में आज के समय में विभिन्न तरह के नमक बेचे जा रहे हैं।
परंतु कौन सा नमक खाने में सही है कौन सा नहीं, यह तय कर पाना थोड़ा मुश्किल होता है।
आइए हम जानते हैं बाज़ार में मिलने वाले टेबल साल्ट, सी साल्ट और हिमालयन पिंक साल्ट में क्या फर्क होता है।
पर सबसे पहले नमक के बारे में कुछ तथ्यों पर नज़र डालते हैं।
Table of Contents
नमक क्या होता है?
नमक एक खनिज है जिसमें मुख्य रूप से सोडियम क्लोराइड होता है।
इसमें इतना सोडियम क्लोराइड होता है – वजन के हिसाब से लगभग 98% – कि ज्यादातर लोग “नमक” और “सोडियम” शब्दों का परस्पर उपयोग करते हैं।
नमक का उत्पादन खारे पानी को वाष्पित करके या भूमिगत नमक की खानों से ठोस नमक निकालकर किया जा सकता है।
आपके किराने की दुकान तक पहुंचने से पहले, टेबल नमक भी सोडियम क्लोराइड के अलावा अशुद्धियों और किसी भी अन्य खनिजों को हटाने के लिए एक शोधन प्रक्रिया से गुजरता है।
कभी-कभी नमी को अवशोषित करने में मदद करने के लिए एंटीकिंग एजेंट जोड़े जाते हैं, और आयोडीन को अक्सर आयोडीन की कमी को रोकने में उपभोक्ताओं की मदद करने के लिए शामिल किया जाता है।
कई स्वास्थ्य पेशेवरों का दावा है कि बहुत अधिक सोडियम उच्च रक्तचाप (High BP) और हृदय रोग का कारण बन सकता है, हालांकि हाल के शोध ने इस लंबे समय से चली आ रही धारणा पर सवाल उठाया है।
हिमालयन पिंक नमक क्या होता है?
हिमालयन पिंक नमक एक गुलाबी रंग का नमक है जो खेवड़ा नमक खान से निकाला जाता है, जो पाकिस्तान में हिमालय के पास स्थित है।
खेवड़ा की खान दुनिया की सबसे पुरानी और सबसे बड़ी नमक खानों में से एक है।
माना जाता है कि इस खदान से निकाले गए हिमालयन पिंक नमक का निर्माण लाखों साल पहले प्राचीन जल निकायों के वाष्पीकरण से हुआ था।
ऐसे देखा जाए तो यह तीनों ही नमक हैं और तीनों में सोडियम क्लोराइड पाया जाता है।
परंतु इनमें बहुत बड़ा फर्क देखने को मिलता है।
Sea salt और table salt में Micro-Plastics (माइक्रोप्लास्टिक) पाए जाते हैं।
मइक्रोप्लास्टिक्स क्या होते हैं?
Microplastic बहुत ही सूक्ष्म प्लास्टिक के कण होते हैं जो
नमक में समुद्र के द्वारा मिल जाता है।
वहीं दूसरी ओर हिमालयन पिंक साल्ट में प्लास्टिक के कण नहीं मिलते हैं क्योंकि
वह प्राचीन समुद्र से बने हैं जोकि इंसानों से पूर्व हुआ करते थे।
इसलिए उसमें प्रदूषण का असर नहीं है।
माइक्रोप्लास्टिक हमारे शरीर में दिक्कतें पैदा कर सकती है क्योंकि वह एक Endocrine disruptor का काम करती है।
और यदि हमारे शरीर में प्लास्टिक प्रवेश करती है तो उसे पूरी तरह नष्ट होने में 500 साल लगते हैं।
इसलिए हिमालयन पिंक साल्ट को सबसे अच्छा माना गया है।
हम जो घर में साधारण नमक खाते हैं वह टेबल साल्ट कहलाता है।
मइक्रोप्लास्टिक्स का प्रभाव
माइक्रोप्लास्टिक्स के संपर्क में आने से ऑक्सीडेटिव तनाव, सूजन वाले घावों और अधिक मात्रा में शरीर के अंदर आने से विषाक्तता (toxicity ) हो सकती है।
कई अध्ययनों ने मनुष्यों में मेटाबोलिज्म संबंधी गड़बड़ी, न्यूरोटॉक्सिसिटी और कैंसर के खतरे में वृद्धि की संभावना का प्रदर्शन किया है।
इसके अलावा, माइक्रोप्लास्टिक अपने घटक यौगिकों के साथ-साथ उनकी सतह पर सोखने वाले यौगिकों को भी छोड़ते पाए गए हैं। मानव स्वास्थ्य और उनके रोगजनन पर माइक्रोप्लास्टिक के प्रभावों को मापने के लिए और अधिक शोध की आवश्यकता है।
अच्छे नमक की ज़रूरत
अच्छे नमक से तात्पर्य यह है कि वह सेहत के लिए कितना लाभकारी है।
हमें अच्छे नमक की ज़रूरत इसलिए होती है क्योंकि नमक हमारे पेट में
हाइड्रोक्लोरिक एसिड (HCL) बनाने में मदद करता है जो पाचन में और खाने को तोड़ने में मदद करता है।
इसके अलावा प्रोटीन को पचाने में भी नमक बहुत मदद करता है।
नमक के अन्य फायदे निम्नलिखित हैं
- एड्रिनल ग्लैंड के कार्य में मदद करता है,
- इम्यून सिस्टम को स्वस्थ रखता है,
- हमारे शरीर को Dehydration से बचाता है,
- शरीर में इंसुलिन के स्तर को नियंत्रित रखता है,
- सोडियम-पोटैशियम पंप को सहयोग देता है।
कितना नमक हमें लेना चाहिए
हमें 1 दिन में 1 से 2 टीस्पून नमक लेना चाहिए।
यदि आप ज्यादा शारीरिक मेहनत करते हैं तो यह मात्रा बढ़कर 3 से 4 टीस्पून हो सकती है।
हर व्यक्ति भिन्न होता है और यह पूरी तरह व्यक्ति की ज़रुरत पर निर्भर करता है।
माइक्रो प्लास्टिक से बचने के उपाय
माइक्रोप्लास्टिक अन्य तरीके से भी हमारे शरीर में प्रवेश करता है।
बोतलबंद पानी – जो बोतलबंद पानी हम पीते हैं उस बोतल की प्लास्टिक बहुत ही बेकार होती है। यदि हम उसे एक से ज़ादा बार इस्तेमाल करते हैं तो प्लास्टिक का असर पानी में आ जाता है।
माइक्रोवेव – माइक्रोवेव में जब प्लास्टिक से कवर करके हम खाना गर्म करते हैं, तब उसमे प्लास्टिक के कण मिल जाने की सम्भावना बहुत अधिक बढ़ जाती है।
उन सभी तरीकों से माइक्रोप्लास्टिक हमारे शरीर में प्रवेश कर सकता है।
इनसे बचने के लिए 2 तरीके होते हैं-
पहला, हमारे शरीर में ही मौजूद कुछ फायदेमंद बैक्टीरिया इन माइक्रोप्लास्टिक्स को खत्म करने में मदद करते हैं।
दूसरा, जितनी भी Cruciferous सब्जियां होती हैं जैसे गोभी, बंद गोभी, ब्रोकली आदि इस माइक्रोप्लास्टिक को खत्म करने में मदद करती हैं।
इन दोनों के अलावा Omega-3 लेने से भी फायदा होता है क्योंकि
Omega 3 माइक्रो प्लास्टिक से होने वाले नुकसान से हमें बचा कर रखता है।
इसलिए हिमालयन पिंक साल्ट हमारे स्वास्थ्य के लिए सबसे बेहतर विकल्प है।
यदि आपको यह आर्टिकल पसंद आये तो इसे ज़रूर शेयर करें और
इसी तरह की महत्त्वपूर्ण जानकारियों के लिए हमारे YouTube Channel को Subscribe करें।